श्री साईज्ञानपीठ ट्रस्ट - पंजीयन क्रमांक - इ - २०९१० (मुं) दि. २० मार्च २००३.
 
स्थापना, उद्देश्य तथा कार्य

वर्ष 1969 में कई पेंचों में उलझी सांसारिक तकलीफों के निवारण हेतु हम दादा से मार्गदर्शन प्राप्त करने गये थे. वर्ष 1978 तक, तर्कों से न सुलझने वाले प्रश्नों का सरलता से निराकरण करने वाली एक शक्ति मात्र के रूप में ही हम दादा को जानते थे. इन दिनों हम दोनों विमोचन विधिमें उपस्थित रहे तथा दीक्षा भी ग्रहण की | दादा ये सब कार्य किस लिए कर रहे है इस संबंध में मुझे बहुत ही कम जानकारी थी. मुझे शास्त्रीय संगीत की ठीकठाक समझ थी और तत्वज्ञान की जिज्ञासा होने के कारण भी आकर्षित हो रहा था . इस कारण से केंद्र पर चलनेवाली भक्तिसाधना के अंतर्गत गाये जाने वाले पदों की मधुरता और सरल शब्दोंमें प्रवाहित होने वाला तत्वज्ञान, इनसे मैं भावविभोर होता चला गया . और यह एक शाश्वत आनंद का स्रोत है इस बात की प्रतीति होने लगी . वर्ष 1977 में दादाजी ने सांसारिक दु:खों के निवारण हेतु किये जाने वाले कामकाज बंद किये और शिरोडा - गोवा में साधना हेतु संमेलनों का आयोजन करने की शुरूआत की . हर छ: महीने के अंतराल पर होनेवाले कुल 8 संमेलनों में उपस्थित रह कर दादा की ज्ञानसाधना से सींचित मुलाकातों में उन्हें सुनने का सौभाग्य जब हमें प्राप्त हुआ, तब उनके कार्य की उपयुक्तता, उसकी व्याप्ति और अलौकिकता का हमें अच्छी तरह बोध हुआ और वर्ष 1978 से 1987 के दौरान, अनेक पड़ावों को पार करते हुए ॐकार साधना की सिद्धता हुई .

 

कार्यप्रणाली में एकसूत्रता का अभाव

भक्तिसाधना और ॐकार साधना करते वक्त स्वर-ताल-लय तथा स्थान-समय की निश्चितता हेतु दादा ने कुछ नियम बनाये थे | दादा के नाम से चलने वाले भारतभर के विभिन्न केंद्रो पर लगभग 35 वर्षो तक हमारा जाना हुआ | (विदेशी केंद्र पर एक बार), तब ज्ञानसाधना , ॐकारसाधना और भक्तिसाधना इस साधनात्रयी के विभिन्न जगहों पर हो रहे कार्यान्वयन में एकसूत्रता का अभाव हमें स्पष्ट रूपसे दिखाई दिया | नियमों के बारें में भी अलग अलग राय थी और साधकों को दिये जाने वाले मार्गदर्शन में भी सुनिश्चितता का अभाव था | कुल मिला कर कार्यप्रणाली एक समान न होकर स्थानविशेष और व्यक्ति- विशेष पर केंद्रित थी |


वर्ष 1986 में मैंने इन परिस्थितियों की ओर दादा का ध्यान आकर्षित किया; तब उन्होंने तत्काल कहाकि मैंने महान विभूतियों से प्रत्यक्ष मार्गदर्शन प्राप्त किया और उसे तुम्हें उपलब्ध कराया है. इसे तुम शास्त्र में निबध्द करो. मेरे सौभाग्य से, दादा ने स्वयं मेरे घर पधार कर, तथा साधना संमेलन के दौरान, तंबूरे के नादझंकार के साथ ॐकारसाधना और भक्तिसाधना का प्रारंभ कराया. यह हमारे लिये अत्यंत प्रेरणादायी रहा. वेबसाईट पर संग्रहित छायाचित्रों में इनसे संबंधित छवियां समाविष्ट हैं.

 

प्रमाणित प्रशिक्षण प्रणाली की आवश्यकता

वर्ष 1991 में दादा के निर्वाण के उपरान्त सभी जगह सांसारिक कष्टों के निवारण हेतु किये जाने वाले कामकाज को पुन: प्राधान्य प्राप्त हुआ| वास्तव में, दादा स्वयं नाथों की सिद्धसिद्धांतपद्धति का अवलंब लेते हुए जो कार्य करते थे, वह उपरोक्त साधनात्रयी में समाविष्ट है ऐसा वे स्वयं अनेक बार कहते आये थे. इसलिये, दादा के सही कार्य का परिचय सांसारिक कष्ट निवारण संबंधी कामकाज के माध्यम से नहीं, अपितु साधना त्रयी की प्रमाणित प्रशिक्षण प्रणाली के द्वारा जिज्ञासुओं का ज्ञानवर्धन करना अत्यंत आवश्यक हो गया है इस निष्कर्ष पर पहुँचते ही हमें यह प्रतीत हुआ है कि इसके अतिरिक्त अन्य कामकाज अब कालबाह्य, अनावश्यक तथा कार्य के मूल स्वरूप से भटकाने वाले लगते हैं.

 

साधनात्रयी का शैक्षणिक स्वरूप

वंदनीय दादा ने सिद्ध किया हुआ ज्ञान,भक्ति और ॐकार साधनात्रयी का लाभ जनसामान्य को किसी की भी मध्यस्थता के बगैर कर्मकांड तथा संप्रदायों में उलझे बगैर, घर बैठे प्राप्त हो यही हमारे ट्रस्ट का उद्देश है| वर्ष 1986 से लगभग 25 वर्षों के गहन अभ्यास के पश्चात मैं साधनात्रयी को शैक्षणिक स्वरूप में उतार पाया हूँ. हमारे ट्रस्ट के द्वारा होने वाले इस कार्य को श्री पंतमहाराज -श्री साईनाथ महाराज तथा वंदनीय दादा (दत्त-नाथ-सूफी) - इनका आशीर्वाद तथा मान्यता प्राप्त हैं. इस तथ्य को साक्षीभूत करने वाली कुछेक घटनाओं का उल्लेख यहाँ करना उचित होगा.

1) ट्रस्ट के कार्यकारी ट्रस्टी श्री शरदचंद्र बाळ के निवासस्थान पर एवं साधना सम्मेलन में, कुछ ज्येष्ठ सेवकों की उपस्थिति में वंदनीय दादा ने तंबूरे के नादझंकार सहित साधना करने से, हमारे ट्रस्ट द्वारा होने वाले कार्य का जैसै श्रीगणेश हुआ.

2) श्री साई संस्थान शिर्डी तथा श्री साई ज्ञानपीठ ट्रस्ट के संयुक्त तत्वाधान में वर्ष 2001 से 2004 तक कुल मिला कर 8 निवासी प्रशिक्षण सम्मेलन आयोजित किए गए.

3) श्री साई समाधि मंदिर शिर्डी में, हमारे ट्रस्ट के साधकों द्वारा, दादा के सिद्ध किए हुए स्वर-ताल-लय में प्रस्तुत “ॐ श्री साईनाथाय नमः” इस मंत्र का उद्घोष नियमित रूप से किया जाता है तथा यही नामस्मरण संस्थान के दूरभाष पर hello tune के रूप में बजाया जाता है.

4) हमारे ट्रस्ट द्वारा आयोजित समारोह में, साधना हेतु निर्मित "ॐकार साधना मार्गदर्शिका" नामक डीवीडी का विमोचन शिर्डी संस्थान के तत्कालीन अध्यक्ष श्री द.म.सुकथनकर की उपस्थिति में, पं. भीमसेन जोशी एवं गान सरस्वती विदुषी किशोरीताई आमोणकर के वरद हस्तों से किया गया. डीवीडी निर्माण हेतु हमारे ट्रस्ट द्वारा किए गए लगभग 4 लाख रुपये के खर्च की प्रतिपूर्ति श्री साई संस्थान ने की, जिसके लिए हम उनके सदैव ऋणी रहेंगे. इसी तरह, प्रशिक्षण एवं प्रत्यक्ष प्रदर्शन की लगभग 6000 डीवीडी की विक्री की व्यवस्था भी शिर्डी संस्थान द्वारा की गई थी.

5) श्री दत्त संस्थान बाळेकुंद्री द्वारा पुरस्कृत “भक्तिप्रेम लहरी” नामक 145 पदों की 5 ऑडियो सीडी का संग्रह दि. 6 अक्तूबर, 2013 के दिन शिवाजी पार्क, दादर स्थित वीर सावरकर सभागृह में प्रकाशित किया गया. श्री दत्त संस्थान बाळेकुंद्री, बेलगाम में इस संस्थान ने इस सीडी संग्रह की विक्री का प्रबंध किया है.

उपरोक्त अवसरों की कुछ छवियां नीचे प्रस्तुत हैं.

 

प्रशिक्षण केन्द्र

प्रत्येक शनिवार को शाम 5 से 7 के दौरान विलेपार्ले पूर्व, मुंबई - 57 स्थित पार्लेश्वर मंदिर के दूसरे मजले के सभागृह में इस विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया जाता है जिसमें प्रवेश निःशुल्क होता है. ट्रस्ट की ओर से आयोजित किए जाने वाले सभी उपक्रमों में व्यक्तिपूजा, अंधश्रद्धा, कर्मकांड और तत्संबंधी कामकाज इत्यादि को प्रश्रय नहीं दिया जाता. ट्रस्ट के प्रमुख उद्देश्य हैः (1) जिज्ञासुओं को विशुद्ध परमार्थ से परिचित कराना, (2) उन्हें साधक अवस्था तक पहुंचाना, और (3) उन्हें स्वयंसिद्ध होने में सहायता करना. साथ मिल कर इस विषय में कम से कम 2 दिनों की शिविर आयोजित करने के इच्छुक जिज्ञासुओं को ट्रस्ट की ओर से मार्गदर्शन प्राप्त हो सकता है.